रफ्ता रफ्ता यह जमाने का सितम होता है🍃
🍃रफ्ता रफ्ता यह जमाने का सितम होता है🍃
एक दिन रोज मेरी उम्र से कम होता है
बाग रोता है असीराने कफस को शायद
दामने सज्जा ओ गुल सुबह को नम होता है..
मनुष्य सोचता है कि जी रहा है, सच्चाई कुछ और है...
हम रोज मर रहे हैं।
यह प्रक्रिया, जिसे हम जीवन कहते हैं, मृत्यु की प्रक्रिया है।
जिस दिन हम जन्मे उसी दिन से मरना शुरु हो गया है। रोज एक एक दिन चुकता जाता, प्रतिपल जीवन क्षीण होता।
घट खाली हो रहा है, भर नहीं रहा है। और बूंद बूंद खाली हो तो सागर भी खाली हो जाता है।
और हम तो केवल गागर हैं।
रफ्ता रफ्ता यह जमाने का सितम होता है
लेकिन इतने धीरे धीरे होती है यह बात कि पता नही चलती।
इतने आहिस्ताआहिस्ता होती है यह बात कि जो बहुत सचेत हैं, जो बहुत जागरूक हैं, बहुत सावधान हैं, उन्हीं के अनुभव में आती है, बाकी तो धोखा खा जाते हैं।
रफ्ता रफ्ता यह जमाने का सितम होता है
एक दिन रोज मेरी उम्र से कम होता है
बाग रोता है असीराने कफस को शायद
दामने सज्जा ओ गुल सुबह को नम होता है
सुबह जाकर बगीचे में देखा है फूलों की पंखुड़ियां, घास की पत्तियां, पत्तियों के किनारे गीले होते है।
शायद बगीचा रो रहा है, बगीचे की आंखों में आंसू हैं जान कर यह बात कि ये फूल अभी हैं, अभी नहीं हो जाएंगे, जान कर यह बात कि यहां सभी कुछ पिंजड़े में बंद कैदियों जैसे हैं।
पिंजड़ों में बंद पक्षी ही नहीं हैं आदमी भी, जो पिंजड़ों में बंद दिखाई नहीं पड़ता; क्योंकि उसके पिंजड़े सूक्ष्म हैं, अदृश्य हैं।
वह भी बंद है। वह भी कैदी है।
कोई हिंदू पिंजड़े में बंद है, कोई मुसलमान पिंजड़े में बंद है, कोई जैन पिंजड़े में बंद है।
ये सब पिंजड़े हैं।
पक्षपात अर्थात पिंजड़ा।
बिना जाने किसी बात को मान लेना अर्थात पिंजड़ा।
बिना अनुभव किए आस्था बना लेना अर्थात अंधापन।
शायद बगीचा भी हमारे लिए रोता है, रोज सुबह फूलों के, पत्तियों के कोर किनारे गीले होते हैं।
लेकिन हमें होश नहीं, हम दौड़े चले जाते हैं अपनी बेहोशी में।
हम वही किए चले जाते हैं जो हमने कल किया था, परसों किया था, जो हमने पिछले जन्मों में अनंत बार किया है।
हजार तरह तखथ्युल ने करवटें बदलीं
कफस कफस ही रहा, फिर भी आशिया न हुआ
कैद तो कैद ही रहेगी, घर नहीं बन सकती।
तुम्हारी कल्पनाएं कितनी ही करवटें बदलें और यही हमने किया है जन्मों जन्मों में।
कल्पनाओं ने करवटें बदलीं। कभी यह थे तो वह होना चाहा, कभी वह थे तो यह होना चाहा ऐसे हमने चौरासी करोड़ योनियों में यात्रा की है। कल्पनाओं की करवटें हैं, और कुछ भी नहीं।
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