आदमी खुद मंदिर बने तो भगवान परवेश करे~
~आदमी खुद मंदिर बने तो भगवान परवेश करे~
एक अंधेरी रात में चर्च पर एक नीग्रो ने जाकर द्वार खटखटाया तो चर्च के पादरी ने द्वार खोला ! काश उसे पता होता कि एक काला आदमी द्वार बजा रहा है तो वह द्वार भी न खोलता !
क्योकि वह चर्च जो था सफेद चमड़ी के लोगो का चर्च था !
अब तक जमीन पर आदमी ऐसा मन्दिर नही बना पाया जो सबका हो !
और जो मन्दिर सबका नही है वह परमात्मा का कैसे हो सकेगा ?
सफेद चमड़ी के लोगों के मन्दिर है,
काली चमड़ी के लोगो के मन्दिर है;
हिन्दुओ के मन्दिर है; मुसलमानों के मन्दिर है; जैनो के मन्दिर है;
लेकिन मनुष्य का कोई मन्दिर नही !
वह मन्दिर भी मनुष्य का नही था !
दरवाजा खोला दिया तो देखा एक नीग्रो खड़ा है, काला आदमी !
पुराने दिन होते तो उसे कहा होता ;
हट शुद्र यहाँ से,
भगवान के मन्दिर में तेरे लिए कोई जगह नही है ! और पुराने दिन होते तो शायद उसकी गर्दन कटवा देता,
या उसके कानों में शीशा पिघलवा कर भरवा देता कि तू इस मन्दिर के आस-पास क्यों आया ! लेकिन जमाना बदल गया है,
तो उस चर्च के पादरी को उसे प्रेम से समझा कर लौटा देना पड़ा !
उसने नीग्रो को कहा : मेरे मित्र,
किसलिए मंदिर में आना चाहते हो ?
उसने कहा : मन है मेरा दुखी,
चित है मेरा पीड़ित और चिंताओ से भरा !
शांत होना चाहता हूँ !
जीवन बीत गया मालूम होता है और कुछ भी मैने पाया नही अब मैं भगवान की शरण चाहता हूँ !
यह एक ही मंदिर है गाँव मे,
मुझे भीतर आने दो,
भगवान का सान्निध्य मिलने दो !
उस पादरी ने कहा : मित्र , जरुर आने दूंगा ! लेकिन जब तक मन शुद्ध न हो,
चित पवित्र न हो, प्राण शांत न हो,
आत्मा ज्योति से न भर जाए,
तब तक भगवान से मिलना नहीं हो सकेगा ! आकर भी क्या करोगे ?
जाओ और पहले अपने मन को शुध्द करो और शांत करो,
हृदय को प्रार्थना और प्रेम से भरो, फिर आना !
फिर मैं तुम्हें भीतर प्रवेश दूंगा ..
वह नीग्रो वापस लौट गया !
उस पादरी ने सोचा ; न होगा कभी इसका मन शांत और न यह दुबारा कभी आएगा !
लेकिन कोई दो-तीन महीने बीत जाने के बाद एक दिन बाजार में उस पादरी ने देखा कि वह नीग्रो चला जा रहा है !
लेकिन वह तो आदमी दूसरा हो गया मालूम पड़ता है !
उसकी आँखों में कोई नई रोशनी,
कोई नई झलक !
उसके पैरों की चाल बदल गई है,
उसके चारों तरफ कोई वायुमंडल ही और हो गया है,
उसके ओंठो पर कोई और ही मुस्कुराहट है जो इस जमीन की नहीं है !
तो उसने उस नीग्रो को पूछा और कहा कि तुम वापस नहीं आए ?
वह नीग्रो हंसने लगा और उसने कहा :;
मैें तो आना चाहता था !
और उसी आने के लिए मेैंने प्रार्थनाएं की,
एक रात जब में प्रार्थना कर सो गया,
तो मेैंने सपना देखा कि भगवान खड़े हैं !
और मुझसे पूछ रहे है कि क्यों तू मुझे पुकार रहा है ?
तो मेैंने कहा कि जो हमारे गाँव का मंदिर है,
चर्च है, मैं उसमें प्रवेश पाना चाहता हूँ,
इसके लिए प्रार्थनाएं कर रहा हूँ !
तो भगवान हंसने लगे और और बोले ;
तू बड़ा पागल है !
यह ख्याल छोड़ दे !
दस साल से मैें खुद उस चर्च में घुसने की कोशिश कर रहा हूँ वह पादरी मुझे भी नहीं घुसने देता !
तू यह ख्याल छोड़ दे !
और सच्चाई तो यह है कि उस मंदिर में ही नहीं, आज तक किसी मंदिर में किसी पुरोहित ने भगवान को प्रवेश नहीं पाने दिया !
आज तक जमीन पर कोई मंदिर भगवान का घर नहीं बन सका !
कई कारण है न बनने के ..
पहली बात ,
भगवान प्रेम है और हमारे सब मंदिर व्यवसाय है !
प्रेम का और व्यवसाय से क्या सम्बन्ध हो सकता है ?
जहाँ व्यवसाय है, वहां प्रेम का कोई प्रवेश नही !
दुसरी बात, सभी मंदिर आदमी के बनाए हुए है ! भगवान आदमी का बनाया हुआ नहीं है !
आदमी की बनाई हुई चीज में भगवान का प्रवेश असंभव है !
तीसरी बात , आदमी जो भी बनाएगा ,
आदमी से छोटा होगा !
बनाने वाले से बनाई गई चीज बड़ी नहीं हो सकती !
सृष्टा से बड़ी उसकी सृष्टि नहीं हो सकती !
आदमी खुद ही बहुत छोटा और क्षुद्र है,
उसके बनाये हुए मंदिर और भी छोटे और क्षुद्र है ! और परमात्मा है विराट, असीम !
लेकिन जिन लोगों को यह ख्याल पैदा होता है कि हम सत्य की खोज करें,
वे किन्हीं मंदिरों में उस खोज को करने लगते है ! इससे बड़ी भूल और कोई दुसरी नही हो सकती !
सत्य की खोज करनी हो,
तो खुद को मंदिर बनाना होगा,
इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं है !
कोई जमीन पर मंदिर नहीं है जहाँ सत्य की खोज हो सके !
हाँ,.हर आदमी खुद मंदिर बन सकता है ,
जहाँ भगवान का प्रवेश हो सके !
और यह खुद आदमी मंदिर कैसे बन जाए ?
चित दर्पण बन जाए तो आदमी मंदिर बन सकता है !
चित दर्पण बन जाए तो आदमी इसलिए मंदिर बन सकता है कि उसी दर्पण में भगवान की छवि उतरनी शुरू हो जाती है ..........
🌷ओशो🌷
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