उनके भीतर कोई अभीप्सा नहीं मालूम होती! कोई उत्कृष्ट आकांक्षा नहीं मालूम होती! मेरे पास आए विदेशी

 मेरे पास लोग आते हैं सारी दुनिया से और उनमें से न मालूम कितने लोग मुझसे आ कर कहते हैं, अक्सर, कि क्या बात है, भारतीय लोगों में कोई रस नहीं मालूम होता ध्यान में? क्या बात है? उनके भीतर कोई अभीप्सा नहीं मालूम होती! कोई उत्कृष्ट आकांक्षा नहीं मालूम होती!


मेरे पास आए विदेशी संन्यासी निरंतर मुझसे कहते हैं कि जिन घरों में वे ठहरते हैं..अगर किसी भारतीय घर में ठहरते हैं या भारतीय घर में किराए से रहते हैं, तो उस घर के लोगों की एक ही इच्छा होती है कि हमारे लड़के को अमरीका भेजना है, यूनिवर्सिटी में भरती करवा देना, स्कालरशिप दिलवा देना, फोर्ड फाउंडेशन से कुछ पैसा मिल जाए, राकफेलर फाउंडेशन में कोई पहचान तो नहीें है? अमरीका से आया हुआ युवक भारत ध्यान सीखने आया है, लेकिन जो भी भारतीय उससे मिलते हैं उनकी सारी उत्सुकता यह होती है कि वे अमरीका कैसे पहुंच जाएं; आक्सपर्ड, कैंब्रिज में कैसे भरती हो जाएं, उनके लड़के इंजीनियर, वैज्ञानिक और डाक्टर कैसे हो जाएं? उन्हें यह ख्याल में नहीं आता कि डाक्टर, वैज्ञानिक और इंजीनियर ध्यान सीखने भारत आ रहे हैं, वे अपने बच्चों को इंजीनियरिंग सीखने बाहर भेज रहे हैं! ध्यान सीखने में उनका कोई रस नहीं है। उनका बेटा ध्यान सीखने आने लगे तो उन्हें बेचैनी होती है कि यह क्या कर रहे हो? यह कैसा अभारतीय काम कर रहे हो! यह शोभा देता है? अरे, पढ़ो-लिखो! पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे साहब! पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब! यहां इच्छा है नवाब बनाने की।


मेरे संन्यासी मुझसे कहते हैं कि भारतीयों की उत्सुकता इतनी ही होती है: तुम्हारा रेडियो हमें बेच दो; तुम्हारी घड़ी हमें दे दो। वे यह पूछते ही नहीं कि तुम यहां क्यों आए हो!! तुम्हारे ध्यान में हमें साझीदार बनाओ, इसमें उनका रस ही नहीं है। अगर उनको वे निमंत्रित भी करते हैं कि चलो, कभी आओ, तो वे कहते हैं कि हमें फुर्सत कहां, समय कहां! और हजार काम हैं। और हमें मालूम ही है कि ध्यान क्या है! और हम तो गीता पढ़ते हैं, और गीता में सब है। और हमने तो घर में ही हनुमान जी को बिठाल रखा है। और हनुमान-चालीसा में सभी कुछ आ गया! अब और अलग से क्या ध्यान सीखना? हनुमान-चालीसा से घड़ी नहीं निकलती..यह एक तकलीफ है। रेडियो नहीं निकलता, टेपरिकार्डर नहीं निकलता..यह एक तकलीफ है। तो वह तुम दे दो! बाकी तो हनुमान-चालीसा से हम सब निकाल लेंगे। भीतरी जो है, वह हम निकाल लेंग

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