तलाश किस चीज़ की है कोई खोज रहा है किताबों में कोई खोज रहा है मँदिरों में
हर व्यक्ति कुछ न कुछ न कुछ खोज रहा है,
बस उसे यह नहीं पता की खोजना क्या है
तलाश किस चीज़ की है
कोई खोज रहा है किताबों में
कोई खोज रहा है मँदिरों में
कोई खाने पीने में
कोई ज्ञान इक्कठा करने में
कोई पैसा कमाने में
कोई धर्म में
कोई साँसारिक रिश्तों में
कोई अपने काम काज में
कोई समाज सेवा में
कोई त्योहारों में
कोई मनोरंजन के साधोनो में
कोई संशोधनों में
कोई घूमने फिरने में
कोई दोस्तों में
कोई शोर शराबे में
और आज कल सोशल मीडिया में, अपने फोन में
सभी लगे हुए हैं एक तलाश में
एक खोज में
एक शोध में
पर पता नहीं क्या खोज रहे हैं। बस खोजे चले जा रहे हैं
कहीं कुछ मिल जाए
कहीं कुछ दिख जाए
और ऐसे ही जिंदगी व्यतीत होती रहती है।
कुछ जाने सूझे बिना दौड़े चले जा रहे हैं।
पर पता नहीं की चाहिये क्या
दिन ब दिन, साल ब साल आते जाते रहते हैं
जिंदगी यूँ ही बीत जाती है..
बस खोज में
एक मृग तृष्णा हो जैसे
पता नहीं कहाँ है
पता नहीं क्या है
बस दौड़ रहे हैं अपने से बाहर
अपने भीतर तो देखा ही नहीं कभी
अपने साथ कभी बैठे ही नहीं
कैसे बैठें, किसीने सिखाया या बताया ही नहीं
बताया भी तो बहुत कठिन था
अपने साथ बैठें कैसे
कितना कुछ भरा हुआ है भीतर
उसका सामना कैसे करें
भागना सरल है
अपने साथ बैठना बहुत कठिन है
जब तक अपने साथ बैठेंगे नहीं , अपने भीतर जो भरा हुआ है उसे महसूस नहीं करेंगे तब तक खाली कैसे होंगे ? जब तक आइना साफ़ नहीं होगा , तब तक असली छवि स्वयँ की दिखेगी कैसे ?
*तब तक समझ में कैसे आएगा की असली खोज तो स्वयँ की थी* ?
असली उपदेश और उपचार तो स्वयँ के भीतर है ।
वेद और उपनिषद् तो तुम स्वयँ ही हो ।
इन्हे पढ़ना है तो स्वयँ को पहचानना पड़ेगा ।
स्वयँ को जानना एवं पाना है तो स्वयँ के संग सत्संग करना पड़ेगा ।
अपने भीतर झाँके और दिन के कुछ क्षण ही सही, स्वयँ के संग बैठना सीखें ।
स्वयं को जानने की प्रक्रिया आरंभ करें।
🧘 ✨ *ध्यान से जुड़े और अपने जीवन का उत्थान करे* ✨🧘♀️
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