में क्या रखा है, पूछते हो? माला में क्या रखा है, पूछते हो? उल्लू के पट्ठे! थोड़ा सोचना, थोड़ा विचार करना!
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…वस्त्रों में क्या रखा है, पूछते हो? माला में क्या रखा है, पूछते हो? उल्लू के पट्ठे! थोड़ा सोचना, थोड़ा विचार करना!
आदमी जैसा है, छोटी-छोटी बातों से जीता है। क्षुद्र-क्षुद्र बातों से बनकर, मिलकर तुम्हारा व्यक्तित्व बना है। वह जिसने गैरिक वस्त्र स्वीकार किये हैं, वह भी जानता है, तुमसे ज्यादा भलीभांति जानता है कि वस्त्रों से कुछ भी होनेवाला नहीं है; लेकिन उसने एक कदम उठाया है; होने की दिशा में थोड़ी हिम्मत की है; पागल होने की हिम्मत की है। मेरे साथ चलने की हिम्मत पागल होने की हिम्मत है। क्योंकि मेरे साथ चलने का मतलब है समाज में अड़चन होगी, परिवार में अड़चन होगी। अगर पति हो तो पत्नी झंझट देगी। अगर पत्नी हो तो पति झंझट देगा। अगर बाप हो तो बच्चे झंझट देंगे।
संन्यासी मेरे पास आकर कहते हैं कि बेटे कहते हैं, "पिता जी! आप घर में ही पहनो ये वस्त्र तो ठीक है, क्योंकि स्कूल में दूसरे बच्चे हम पर हंसते हैं कि तुम्हारे पिताजी को क्या हो गया! भले-चंगे थे, यह क्या इनको धुन सवार हुई!' पत्नियां मेरे पास आती हैं। कहती हैं कि जरा समाज में जीना है, कम से कम इतना तो कर दो कि विवाह इत्यादि के अवसर पर पतिदेव गेरुआ पहनकर न पहुंचें, नहीं तो दूल्हा तो एक तरफ रह जाता है, ये दूल्हा मालूम पड़ते हैं। और स्त्रियां देखकर हंसती हैं कि इनको क्या हो गया!
कोई मेरे साथ खड़े होकर तुम्हें कुछ राहत थोड़े ही मिल जायेगी! अड़चन में डालूंगा। यह तो अड़चन में डालने की शुरुआत है। जैसे-जैसे पाऊंगा कि तुम्हारी अंगुली हाथ में आ गई, पहुंचा पकडूंगा। यह तो शुरुआत है। आगे-आगे देखिए होता है क्या!
-Osho
जिन सूत्र-भाग-1, प्रवचन-6
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