गहरे ध्यान में क्या होता है?
मुर्ति राम पूनियां🙏🙏🙏
गहरे ध्यान में क्या होता है?
जब हम गहरे ध्यान में प्रवेश करते है तो भीतर की सारी ऊर्जा, सहस्त्रार चक्र पर आकर स्थिर हो जाती है। तब परम शांति और आनंद की वर्षा प्रारंभ हो जाती है। समय का बोध समाप्त हो जाता है और व्यक्ति मन के पार अपने आत्म स्वरूप में स्थित हो जाता है। न तो भूतकाल के विचार आते है, न तो कोई भविष्य की चिंता सताती है। इस स्थिति में व्यक्ति वर्तमान के एक-एक क्षण का आनंद लेता है।
गहरे ध्यान में जैसे ही निर्विचार स्थिति आती है, हमारी ऊर्जा नीचे के चक्रों को शुद्ध करते हुए सहस्त्रार की तरफ गति करती है। लगातार इस स्थिति में बने रहने से चक्रों का असंतुलन भी दूर होने लगता है और चक्रों की शुद्धि भी प्रारंभ हो जाती है। पर कितने दिन में कोई चक्र संतुलन को प्राप्त करेगा या चक्र जाग्रत हो उठेगा ये कहना कठिन है क्योंकि हर किसी के चक्र का असंतुलन और अशुद्धि अलग-अलग होती है।
प्राण अनसुने नाद से आपूरित हो उठते हैं। रोआँ-रोआँ आनंद की पुलक में काँपने लगता है। जगत प्रकाश-पुंज मात्र प्रतीत होता है। इंद्रियों के लिए अनुभूतियों के द्वार खुल जाते हैं। प्रकाश में सुगंध आती है। सुगंध में संगीत सुनाई पड़ता है। संगीत में स्वाद आता है। स्वाद में स्पर्श मालूम होता है।
तर्क की सभी कसौटियाँ टूट जाती हैं। कुछ भी समझ में नहीं आता है और फिर भी सब सदा से जाना हुआ मालूम होता है। कुछ भी कहा नहीं जाता है और फिर भी सब जीभ पर रखा प्रतीत होता है।
विगत जन्मों के भेद खुलने लगते हैं, चारों ओर से दिव्यता का प्रकाश आने लगता है। ऐसा व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की ऊर्जा का स्तर, उसका आभा मंडल उसके मन के विचार भी देख सकता है। इस अवस्था को शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता, क्योंकि ये शब्दातीत अवस्था है, जिसने इसे पाया वो इसे शब्दों में ढालने में असमर्थ ही रहा है, ये अनुभव तो इस अवस्था में पहुँच कर ही हो सकते हैं।
ध्यान की पूर्णता समाधि के द्वार खोल देती है। ध्यानी व्यक्ति हजारों में अलग पहचान आ जाता है। उसकी ऊर्जा और आकर्षण अनायास ही लोगों को आकर्षित कर जाते हैं।
ऐसे व्यक्ति की वाणी में परम शांति और शब्दों के बीच के मौन को भी सुना जा सकता है। ऐसे व्यक्ति के सान्निध्य मात्र से ही ऊर्जा और दिव्यता का अनुभव होने लगता है। ऐसा व्यक्ति नींद में भी जागृत रहता है और उसकी कार्यक्षमता सामान्य लोगों की अपेक्षा कहीं अधिक बढ़ जाती है।
ऐसा व्यक्ति मानव से महामानव की श्रेणी में आ जाता है। ऐसा व्यक्ति स्वयं को तो प्रकाशित कर ही लेता है, दूसरों के जीवन को प्रकाशित करने का सामर्थ्य भी प्राप्त कर लेता है। ऐसा व्यक्ति साधक नहीं रह जाता, सिद्ध हो जाता है..✍️❤️💻
❤ओशो❤
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