ताओ की अंतिम घटना—साक्षी
ताओ की अंतिम घटना—साक्षी
और अगर कोई व्यक्ति सब होने दे जो होता है, तो साक्षी ही रह जाएगा, और तो कुछ बचेगा नहीं उसके भीतर। देखेगा कि क्रोध आया। देखेगा कि भूख आई। देखेगा कि नींद आई। वह साक्षी हो जाएगा। तो ताओ की जो गहरी से गहरी पकड़ है वह साक्षी में है। वह साक्षी रह जाएगा। वह देखता रहेगा, देखता रहेगा, एक दिन वह यह भी देखेगा कि मौत आई और देखता रहेगा। क्योंकि जिसने सब देखा हो जीवन, वह फिर मौत को भी देख पाता है। क्योंकि हम जीवन को ही नहीं देख पाते, हम सदा बीच में आ जाते हैं, तो मौत के वक्त भी हम बीच में आ जाते हैं और नहीं देख पाते कि क्या हो रहा है।
वह मौत को भी देखेगा। जिसने नींद को आते देखा और जाते देखा, जिसने बीमारी को आते देखा और जाते देखा, क्रोध को आते देखा जाते देखा, वह एक दिन मौत को भी आते देखेगा। वह जन्म को भी आते देखेगा। वह सब का देखनेवाला हो जाएगा। और जिस दिन हम सबके देखनेवाले हो जाते हैं उसी क्षण हम पर कोई भी कर्म का कोई बंधन नहीं रह जाता। क्योंकि कर्म का सारा बंधन हमारे कर्ता होने में है कि मैं कर रहा हूं। चाहे क्रोध कर रहे हों और चाहे ब्रह्मचर्य साध रहे हों, लेकिन मैं करनेवाला हूं मौजूद है। चाहे पूजा कर रहे हों और चाहे भोजन कर रहे हों, मैं करनेवाला मौजूद है।
तो ताओ की जो अंतिम घटना है उसमें मैं तो खो जाएगा, कर्ता खो जाएगा, साक्षी रह जाएगा। अब जो होता है होता है। अब इसमें कुछ भी करनेवाला नहीं है। डुअर जो है वह अब नहीं है। तो ऐसी जो चेतना की अवस्था है—जहां न कोई शुभ है, न कोई अशुभ है; न अच्छा है, न बुरा है; जहां सिर्फ स्वभाव है; और स्वभाव के साथ पूरे भाव से रहने का राजीपन है; जहां कोई संघर्ष नहीं, कोई झगड़ा नहीं; ऐसा हो, वैसा हो, ऐसा कोई विकल्प नहीं; जो होता है उसे होने देने की तैयारी है—तो विस्फोट, एक्सप्लोज़न जिसको मैं कहता हूं वह तत्काल घटित हो जाएगा।
ओशो
*जिन खोजा तिन पाइयाँ
Comments
Post a Comment