जब कोई जीव, परमात्मा की शरण में जाता

 ।जब कोई जीव, परमात्मा की शरण में जाता है, सबसे पहले उसे संसार से विरक्ति होने लगती है, और उसे ऐसा लगने लगता है कि, उसे इस संसार में वह प्रेम नहीं मिल रहा है, जिसकी वह इस जीवन में तलाश कर रहा है, अनेक जगह से ठोकर खाकर ,जब वह उस परमात्मा को पाना चाहता है, प्रकृति यानी परमात्मा उसकी मदद करता है l और उसे परमात्मा के रूप में जीवित सतगुरु मिलते हैं, और वह उस जीव का मार्गदर्शन कर, उसको अपने भीतर ठहरा कर उस परम प्रेम से मिला देता है, जो उसके भीतर ही है, और उस प्रेम रस को पीते ही, उसे अपने भीतर बड़ी शांति का अनुभव होने लगता है, और जब सतगुरु के माध्यम से, उनके दिशानिर्देशों में वह अपनी यात्रा करता है, तो दिनों दिन उसकी गहराई बढ़ने लगती है, और साधक को, गहरी और गहरी, शांति का अनुभव होने लगता है, , तब वह अपने भीतर और जाने की चेष्टा करता है, क्योंकि जिस प्रेम शांति को वह बाहर खोज रहा था, अब वह उसे अपने सिवाय कहीं और नहीं मिलती, और साधक अपने आप में ठहरने लगता है, और जब वह पूरी तरह उस परम शांति यानी उस 0 मैं खो जाता है, तब वह जान पाता है कि शांति का जो सोत्र मेरे ही भीतर है, अब , उस आनंद शांति में पूरी तरह से डूब जाता है, क्योंकि वहां बस आनंद ही आनंद है, और उस आनंद में वह अपने को ही भूल जाता है, तब वह अंतिम बात घटती है , , क्योंकि घटना अंदर में इतनी बड़ी घट रही है, कि इस प्रेम आनंद के रस मैं ,बहार के संसार को भी पूरी तरह भूल जाता है, और अब केवल एक जागरण की स्थिति बनती है ,यहां उसे यह भी ख्याल नहीं रहता कि, वह यहां है भी या नहीं, यानी अपने होने को भी भूल जाता है, तब अंतिम घटना घटती है, चाहे उसे समाधि कहो या गुरु शिष्य का एक हो जाना कहो या बूंद का सागर में मिलना कहो सब एक ही बात है l सतनाम श्री वाहेगुरु जी❤️🪔🪔🙏🪷🪷🪷🌹🌹🌹

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