संभोग से समाधि
संभोग से समाधि
पुरुष के जीवन में दो स्त्रिया है एक वह स्त्री जो बाहर है दूसरी वह स्त्री जो पुरुष के भीतर सूक्ष्म रूप मे शक्ति रूप मे कुंडलिनी रूप और कई नाम है लेकिन वह है वही स्त्री जो बाहर है जब तुम्हे सत्य . समाधि.ईश्वर. भागवत की उपलब्धि होती है वह इसी सूक्ष्म स्त्री का मिलन है उस सूक्ष्म स्त्री का संग है बाहरी स्त्री के मिलन से संसार बनता उस सूक्ष्म स्त्री के मिलन से समाधि. योग. अंतर् सम्भोग. और कई नाम है उपलब्धि मात्र एक है.दोनो स्त्री के पाने मे क्या क्या अंतर् है यह मजे की बात है बाहरी को पाते ही उसकी हजारो मांगे शरू हो जाती है लेकिन ठीक उस अंदर की मोजूद सूक्ष्म स्त्री को पाने से सब कुछ उल्टा है वह सूक्ष्म स्त्री कुछ भी मांग नही करती है और पाने वाला व्यक्ति की उस बाहरी स्त्री के अलावा जो जो पुरुष की अनैक मांग अनैक वासना भी समाप्त हो जाती है तब कोई मांग शेष नही रह जाती है जिसे ब्रह्मचर्य कहते है ,इसलिए उस मिलन उस सम्भोग को ,उस घटना को - परम् मिलन कहा जाता है समाधि मिलती है इसका परम आनंद है इन बातो से शास्त्र भरे पड़े है उसकी परंशसा करने वाले , उसकी जय जय कार करने वाले उसकी पूजा करने वाले लाखो मिल जायेंगे लेकिन उसकी उपलब्धि कैसे होगी यह किसी को पता नही! बाहरी स्त्री को पाना है उसके राज रहस्य सभी को पता है की हमारे पास धन शक्ति साधन होनी चाहिए लेकिन वह स्त्री जो हमारे अंदर मोजूद है वह धन साधन बाहरी शक्ति साधन से नही मिलती है लेकिन अंदर की सूक्ष्म स्त्री पाना है तब बाहरी स्त्री से ठीक विपरीत मार्ग है बाहरी स्त्री पाना है तब हमे कुछ बनना पड़ता है लेकिन सूक्ष्म स्त्री को पाना है तब हमे मिटाना पड़ता है बाहरी स्त्री पाने के लिए बाहरी चलाग् लगानी पड़ती है अन्दर की स्त्री को पाना है तब अपने अंदर गहरी चलाग् लगानी पड़ती है बाहरी स्त्री तुम्हे सम्प्रण करती है लेकिन आंत्रिक स्त्री को तुम्हे सम्प्रण करना पड़ता है बाहरी स्त्री से प्रेम के झूठे शब्द ,झूठे वादे देने पड़ते है लेकिन अंदर की स्त्री के लिए सिर्फ मौन चाहिए खुला सरल हृदय चाहिए !
यह सबसे बड़ा झूठ है कि ईश्वर मिलता है मनुष्य का जन्म ही ईश्वर है यहाँ इश्वर और स्त्री जन्म के साथ ही मिले हुए है बस हमारे अंदर जहा से विचार वासना भाव पैदा होते है उस दवार् पर खडा होना है वर्तमान को जीने का प्रयास करना है फिर उस स्थिर चेतना से संगीत पैदा होगा ,रोम रोम में आनंद खिलेगा फिर वहा से मन का भगाना नहीं होगा जिसे समाधि कहते है
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