प्रश्न : भगवान, सुना है आप भोजन में शाकाहार को तरजीह देते हैं। लेकिन पुराने शास्त्र कहते हैं कि जीव ही जीव का आहार है। और आप जानते हैं कि मछली मछली को निगलती है। क्या इस पर कुछ कहने की कृपा करेंगे?*
*प्रश्न : भगवान, सुना है आप भोजन में शाकाहार को तरजीह देते हैं। लेकिन पुराने शास्त्र कहते हैं कि जीव ही जीव का आहार है। और आप जानते हैं कि मछली मछली को निगलती है। क्या इस पर कुछ कहने की कृपा करेंगे?*
अब इनको शाकाहार में अड़चन मालूम हो रही है! क्योंकि ये कहते हैं,
*"शास्त्र कहते हैं कि जीव ही जीव का आहार है।'*
शास्त्र जरूर मगरमच्छों ने लिखे होंगे।
छोटी मछलियों से तो पूछो कि छोटी मछलियां क्या कहती हैं!
ये बड़े मच्छों ने लिखे होंगे।
*मगरमच्छ! ऋषि-मुनि!*
क्या-क्या गजब की बातें कह गए!*
मगर बेचारी छोटी मछली से तो पूछो।
आदमी अजीब है।
अगर तुम शेर को मारो तो इसको कहते हैं--शिकार, क्रीड़ा, खेल। अरे लीला कर रहे हैं! और शेर तुम्हें खा जाए तो दुर्घटना।
क्यों भाई, क्या गड़बड़ हो गई?
अरे जीव तो जीव का आहार है।
शेरों से तो पूछो, सिंहों से पूछो। अगर जीव जीव का आहार है तो आदमी को खाने दो, मजे से खाने दो, बेचारे कोई बुरा नहीं कर रहे हैं। और अगर जीव जीव का आहार है तो आदमी आदमी को खाए, इसमें अड़चन क्या है? फिर तो जो आदमखोर हैं वे सच्चे पवित्र लोग हैं। जब जीव जीव का आहार है
और मछली मछली को खा रही है,
तो आदमी आदमी को खा रहा है।
अरे बड़ा आदमी छोटे को खा जाए, और क्या? बूढ़ा बच्चे को खा जाए, और क्या करोगे!
कि बड़ा नेता है तो चमचे को ही खा जाए।
जो मिल जाए उसको खा जाए,
जो जिसके कब्जे में आ जाए।
अब राजशेखर नंबियार को शाकाहार में विरोध मालूम पड़ता है। और इसमें कुछ हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि *हिंदू धर्म कोई शाकाहारी धर्म नहीं है। यह शुद्ध मांसाहारियों का धर्म है। वह तो महावीर और बुद्ध की इतनी छाप पड़ी गहरी कि ब्राह्मण संकोच से भर गए।* लेकिन जहां महावीर और बुद्ध की छाप पड़ी वहीं ब्राह्मण संकोच से भरे--सिर्फ उत्तर भारत में।
कश्मीरी ब्राह्मण तो मजे से मांसाहार करता है। इसलिए जवाहरलाल नेहरू को मांसाहार में कोई अड़चन न थी--कश्मीरी ब्राह्मण। शुद्ध आहार कर रहे हैं, शास्त्रीय आहार।
और देखते हो, महात्मा गांधी अहिंसा की जिंदगी भर बकवास करते रहे और जब अपना उत्तराधिकारी चुना तो जवाहरलाल को चुना। तब जरा भी खयाल न रखा कि एक मांसाहारी को चुन रहे हैं, शुद्ध मांसाहारी को।
फिर फिक्र छोड़ दी। फिर गई सब अहिंसा वगैरह, एक तरफ हटा कर रख दी। कसौटियां तो तब होती हैं जब समय आते हैं।
*दक्षिण भारत के ब्राह्मण भी मांसाहारी हैं, क्योंकि महावीर और बुद्ध की छाप वहां भी नहीं पड़ी। बंगाल के ब्राह्मण भी मांसाहारी हैं, क्योंकि वहां भी बुद्ध और महावीर की छाप नहीं पड़ी।* बुद्ध और महावीर की छाप तो सिर्फ उत्तर प्रदेश पर पड़ी। तो जो उत्तर भारत है वह बुद्ध और महावीर के कारण संकोच से भर गया।
*उत्तर भारत का ब्राह्मण संकोच करने लगा कि अगर मैं मांसाहार करूं तो महावीर और बुद्ध की प्रतिमा और भी निखर कर प्रकट होगी। क्योंकि लोग कहेंगे कि अरे, तुम मांसाहारी, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं? फिर बुद्ध और महावीर ही सच्चे भगवान हैं। इस बेचैनी में, इस परेशानी में उत्तर भारत के ब्राह्मण को मांसाहार छोड़ना पड़ा। परेशानी में छोड़ा है।*
रामकृष्ण परमहंस मछलियां खाते रहे,
*विवेकानंद मांसाहारी बने रहे।*
कोई अड़चन न थी।
राजशेखर नंबियार केरल से हैं,
तो केरल में तो कोई अड़चन नहीं है,
बुद्ध और महावीर से बहुत दूर पड़ गया,
सबसे दूर पड़ गया केरल।
मैं शाकाहार को तरजीह देता हूं,
निश्चित ही तरजीह देता हूं। क्योंकि जो शास्त्र कहते हैं कि जीव जीव का आहार है वे शास्त्र गलत लोगों ने लिखे होंगे। वे शास्त्र बेईमानों ने लिखे होंगे।* वे उन्होंने लिखे होंगे जो हिंसा को तरजीह देना चाहते थे, जो मांस की लोलुपता नहीं छोड़ पाते थे।
और यह सच है कि मांस स्वादिष्ट होता है, ऐसा मांसाहारियों का कहना है।
श्रुति है, मैंने चखा नहीं। मगर श्रुति प्रमाण है
और श्रुति के विपरीत जो है वह तो प्रमाण है ही नहीं
ऐसा मैंने सुना।
मेरे पास बहुत-से मांसाहारी हैं।
मेरे पास तो नब्बे प्रतिशत मांसाहारी हैं।
मेरे भोजन ही जो बनाते हैं वे भी मांसाहारी हैं।
विवेक(एक पश्चिमी ओशो संन्यासिन) मुझसे कहती है कि मांसाहार स्वादिष्ट होता है, लेकिन अब मैं कल्पना भी नहीं कर सकती कि कैसे इतने दिन तक मांसाहार करती रही! कभी सोचा ही नहीं,
कभी विचार ही न उठा।
पश्चिम में मांसाहारी घर में कोई पैदा होता है, बचपन से ही मांसाहार शुरू कर देता है; जैसे हम शाकाहार शुरू करते हैं, वह मांसाहार शुरू करता है। सवाल ही नहीं उठता।
यह तो उसे यहां आकर...
अब वह कहती है कि मुझे अगर मांसाहार करना पड़े तो असंभव। वमन हो जाएगा। देखते ही से वमन हो जाएगा। क्योंकि यह बात ही सोचने जैसी नहीं है कि आदमी और जीवन को नष्ट करे, अपने स्वाद के लिए।
ओशो
सहज आसिकी नाहिं, प्रवचन--04
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