केंद्रित होने कीं विधि
केंद्रित होने कीं विधि
जब किसी व्यक्ति के पक्ष या विपक्ष
में कोई भाव उठे तो उसे उस
व्यक्ति पर मत आरोपित करे
यह सूत्र कहता है
कि जब किसी के प्रति घृणा
प्रेम या कोई और भाव
पक्ष या विपक्ष में पैदा हो तो उसको
उस भाव को उस व्यक्ति पर आरोपित मत करो
बल्कि स्मरण रखो कि उस भाव का स्त्रोत तुम स्वयं हो
एक बहुत बड़े झेन
सदगुरू लिंची कहा करते थे
मैं जब युवा था तो मुझे
नौका-विहार का बहुत शौक था
मेरे पास एक छोटी सी नाव थी और
उसे लेकर में अक्सर अकेला झील
की सैर करता था। मैं घंटों झील में रहता था
एक दिन ऐसा हुआ कि मैं अपनी नाव में
आँख बंद कर सुंदर रात पर ध्यान कर रहा था
तभी एक खाली नाव उलटी दिशा में
आई और मेरी नाव से टकरा गई
मेरी आंखे बंद थीं
इसलिए मैंने मन
में सोचा कि किसी व्यक्ति ने अपनी नाव
मेरी नाव से टकरा दी है
और मुझे क्रोध आ गया
मैंने आंखें खोली और मैं उस
व्यक्ति को क्रोध में कुछ कहने ही जा रहा था कि मैंने देखा कि दूसरी नाव खाली है
अब मुझे कुछ करने का कोई उपाय न रहा
किस पर यह क्रोध प्रकट करूं? नाव तो खाली है
और वह नाव धार के साथ बहकर आई थी।*
और मेरी नाव से टकरा गई थी
अब मेरे लिए कुछ भी करने को न था
एक खाली नाव पर क्रोध उतारने
की कोई संभावना न थी
तब फिर एक ही उपाय बाकी रहा
मैंने आंखें बंद कर लीं
और अपने क्रोध को पकड़ कर उलटी दिशा में बहने लगा
और मैं पहुँच गया अपने केंद्र पर
वह खाली नाव मेंरे आत्म ज्ञान का कारण बन गई
उस मौन रात में मैं आपने भीतर सरक गया
और क्रोध मेरी सवारी बन गया
और खाली नाव मेरी गुरु हो गई।
और फिर लिंची ने कहा
अब जब कोई आदमी मेरा अपमान करता है
तो मैं हंसता हूं और कहता हूं कि यह नाव भी खाली है
मैं आंखें बंद करता हूं और अपने भीतर चला जाता हूं
इस विधि को प्रयोग करो
यह तुम्हारे लिए चमत्कार कर सकती है
ओशो
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