विठोबा की कथा है महाराष्ट्र में,बड़ी प्रीतिकर है ।
विठोबा की कथा है महाराष्ट्र में,बड़ी प्रीतिकर है ।
विठोबा कृष्ण का नाम है । वे अपने एक भक्त को
मिलने आए हैं, क्योंकि भक्त उनकी बड़े दिनों से
प्राथना - पूजा कर रहा है । लेकिन जब वे आए हैंं,
तो भक्त की माँ बीमार है । वह अपनी माँ की
सेवा कर रहा है ।
वे पीछे आकर खड़े हो गए : उन्होंने द्वार पर दस्तक दी ।
द्वार खुला था । भीतर आ गए । उन्होंने कहा कि देख,
मैं तेरा प्यार, तेरा कृष्ण, जिसकी तू याद करता रहा,
मैं आ गया ।
भक्त ने कहा, तुम बेवक्त आए । अभी मैं माँ की
सेवा कर रहा हूं ।
अभी फुर्सत नहीं है । पास ही एक ईंट पड़ी थी,
वह उसने सरका दी । उसने कहा कि इस पर विश्राम
करो । जब माँ की सेवा पूरी कर लूंगा, तब फिर बातचीत होगी । वह रातभर पैर दाबता रहा । लौटकर देखा भी नहीं । और कृष्ण उस ईंट पर खड़े - खड़े थक गये और
मूर्ति हो गये होंगे, तो विठोबा की मूर्ति है वह ईंट पर
खड़ी है । मगर गजब का भक्त रहा होगा - गजब का भरोसा रहा होगा, कृष्ण को भी खड़ा रखा ।
कृष्ण को भी ईंट पर खड़ा कर दिया । भक्त का भरोसा इतना है, भक्त की श्रद्धा इतनी है कि जल्दी क्या है !
बेचैनी क्या है । ऐसे को भगवान् मिलते हैं ।
जो भगवान् को भी कह दे कि बैठो, विश्राम करो ।
ईंट पर बिठाल दे भगवान् को । लौटकर भी न देखे ।
भक्त को भगवान् मिला ही हुआ है । भगवान् लौट जायेगा, यह सवाल ही नहीं उठता ।
कैसी उसकी प्रतीक्षा रही होगी ।
कैसी उसकी ध्यान की गहराई रही होंगी !
कैसा उसका भक्ति - भाव रहा होगा,
जिसमें एक लहर भी नहीं उठती !
ओशो
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