आधुनिक युग में सर्प से अपरिचय और कुंडलिनी से भी:
तो पुराने दिनों में जब यह प्रतीक खोजा गया कुंडलिनी के लिए, तब शायद सर्प से बेहतर कोई प्रतीक नहीं था। अब भी नहीं है; लेकिन शायद भविष्य में और प्रतीक हो जाएं--राकेट की तरह। कभी भविष्य का कोई खयाल राकेट की तरह कुंडलिनी को पकड़ सकता है; वैसी उसकी यात्रा है--एक अंतरिक्ष से दूसरे अंतरिक्ष, एक ग्रह से दूसरे ग्रह में, बीच में शून्य की पर्त है। वह कभी प्रतीक बन सकता है। प्रतीक तो युग खोजता है। यह प्रतीक तो उस दिन खोजा गया जब आदमी और पशु बड़े निकट थे। उस वक्त सारे प्रतीक हमने पशुओं से खोजे, क्योंकि हमारे पास वही तो जानकारी थी, उन्हीं से हम खोजते थे। सर्प उस समय हमारी नजर में सबसे निकटतम प्रतीक था।
जैसे विद्युत--उस दिन हम नहीं कह सकते थे। आज जब मैं बात करता हूं तो कुंडलिनी के साथ इलेक्ट्रिसिटी की बात कर सकता हूं। आज से पांच हजार साल पहले कुंडलिनी के साथ विद्युत की बात नहीं की जा सकती थी, क्योंकि विद्युत का कोई प्रतीक नहीं था। लेकिन सर्प में विद्युत जैसी क्वालिटी भी है। हमें अब कठिन मालूम होता है, क्योंकि हममें से बहुतों के जीवन में सर्प का कोई अनुभव ही नहीं है। हमारी बड़ी कठिनाई है, क्योंकि हमारे लिए सर्प का कोई अनुभव नहीं है। कुंडलिनी का तो है ही नहीं, सर्प का भी बहुत अनुभव नहीं है। सर्प हमारे लिए जैसे एक मिथ है।
आधुनिक युग में सर्प से अपरिचय और कुंडलिनी से भी:
अभी पिछली दफा लंदन में बच्चों का एक सर्वे किया गया, तो लंदन में सात लाख ऐसे बच्चे हैं जिन्होंने गाय नहीं देखी। तो जिन बच्चों ने गाय न देखी हो, उन्होंने सर्प देखा हो, यह जरा मुश्किल मामला है। अब जिन बच्चों ने गाय नहीं देखी है, अब इनका चिंतन, इनका सोचना, इनके प्रतीक बहुत भिन्न हो जाएंगे।
सर्प बाहर हो गया दुनिया से, वह हमारी दुनिया का अब हिस्सा नहीं है बहुत। कभी वह हमारा बहुत निकट पड़ोसी था; चौबीस घंटे साथ था, सत्संग था। और तब आदमी ने उसकी सब चपलताएं देखी हैं, उसकी बुद्धिमानी देखी है, उसकी गति देखी है; उसकी सरलता भी देखी है, उसका खतरा भी देखा है, वह सब देखा है। ऐसी घटनाएं हैं जब कि कोई सर्प एक बच्चे को बचा ले। एक निरीह बच्चा पड़ा है, और सर्प उस पर फन मारकर बैठ जाए और उसको बचा ले। वह इतना भोला भी है। और ऐसी भी घटनाएं हैं कि वह खतरनाक से खतरनाक आदमी को एक दंश मार दे और समाप्त कर दे। वे दोनों उसकी संभावनाएं हैं।
तो जब आदमी सर्प के बहुत निकट रहा होगा, तब उसको पहचाना था वह। उसी वक्त कुंडलिनी की बात भी चली थी, वे दोनों तालमेल खा गए। वह बहुत पुराना प्रतीक बन गया। लेकिन सब प्रतीक अर्थपूर्ण हैं। क्योंकि जब बनाए गए हैं हजारों साल में, तो उनके पीछे कोई तालमेल है। लेकिन अब टूट जाएगा, बहुत दिन सर्प का प्रतीक नहीं चलेगा। अब बहुत दिन तक हम कुंडलिनी को सरपेंट पावर नहीं कह सकेंगे। क्योंकि सर्प बेचारा अब कहां है! अब उसमें उतनी शक्ति भी कहां है! अब वह जिंदगी के रास्ते पर कहीं दिखाई नहीं पड़ता। वह कहीं हमारा पड़ोसी भी नहीं रहा, हमारे पास भी नहीं रहता। उससे हमारे कोई संबंध नहीं रह गए हैं। इसलिए यह सवाल उठता है, नहीं तो पहले यह कभी सवाल नहीं उठ सकता था, क्योंकि सर्प एकमात्र प्रतीक था।
💚ओशो💚
जिन खोजा तिन पाइयां--प्रवचन-18
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